हवा नहीं तूफ़ान हूं मैं
And here's my third Hindi poem!! Wrote this at 2:30am last night. हाथ नहीं किसी के आउ, हवा नहीं तूफ़ान हूं मैं। कितना भी कोई रोके टोके, अपने ही रास्ते जाऊँगा। है ताकत तो करो सामना, तुम्हे कुचल बढ़ जाऊंगा। जितना भी तुम पास आओ, गले नहीं लगाऊंगा। छूने की कोशिश करी तो, चूर चूर कर जाऊंगा। इतना मैं बुरा ना था पहले, उस चोट ने ऐसा बना दिया। घायल किया गंभीरता से ऐसा, होश में मुझे ला दिया। बन के मैं शीतल हवा, लहराता घूमता फिरता था। गरजती बिजली से फिर हुआ सामना, हौसला मेरा जड़ दिया। बादल ऐसा गरजाया उसने, पानी मुझे कर दिया। जो दबता है आधा, दबा उसे देते हैं। शराफत जो दिखाए ज़्यादा, बेज़ुबां उसे कर देते हैं। ठान ली थी उस दिन से, हवा नहीं तूफ़ान हूं मैं। कदमो की आहट नहीं, शेर की दहाड़ हूं मैं।